
कबीरदास जयंती क्या है :
कबीरदास जयंती महान संत, कवि और समाज सुधारक संत कबीरदास जी की जन्म जयंती के रूप में मनाई जाती है। यह दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। साल 2025 में कबीरदास जयंती 11 जून को मनाई जा रही है।
कबीरदास कौन थे :
संत कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। उनका जन्म एक जुलाहा परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने जीवनभर समाज के हर वर्ग के लिए आध्यात्मिकता, समानता और प्रेम का संदेश दिया।
कबीरदास जी ने धर्म की आड़ में हो रहे पाखंड, जात-पात, और अंधविश्वासों पर प्रहार किया।
उन्होंने किसी भी धर्म, जाति या वर्ग से ऊपर उठकर “एक ओंकार” और “राम-रहीम एक समान” की भावना को फैलाया।
वे भक्ति आंदोलन के महान स्तंभ थे और उनकी वाणी आज भी प्रासंगिक है।
कबीर की वाणी में जीवन का सत्य
कबीरदास जी की रचनाएँ सरल भाषा में होती थीं, लेकिन उनमें गहरा आध्यात्मिक ज्ञान छुपा होता था। उनकी साखियाँ, दोहे, और रमैनी आज भी लोगों के जीवन का मार्गदर्शन करती हैं।
कुछ प्रसिद्ध दोहे:

- “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”
आत्मचिंतन का सिख देती है ये पंक्ति। - “पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
प्रेम को ज्ञान से ऊपर रखा। - “साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उडाय।” सार्थक और व्यर्थ का
अंतरसमझाना।
कबीरदास जयंती कैसे मनाई जाती है :
इस दिन कबीर पंथी समुदाय, संतों और अनुयायियों द्वारा कीर्तन, भजन, सत्संग और प्रभात फेरी का आयोजन किया जाता है।
कबीर के दोहों और उनके विचारों को जनमानस तक पहुँचाने के लिए कवि सम्मेलन, धार्मिक सभाएं और विचार गोष्ठियाँ होती हैं।
उनके जीवन से जुड़े संदेशों को विद्यालयों और कॉलेजों में भी साझा किया जाता है।
कबीरदास से हमें क्या सिखने को मिलता है :
- जात-पात और धर्म के भेदभाव को मिटाना
- सीधा, सरल और सच्चा जीवन जीना
- प्रेम, करुणा और सत्य को अपनाना
- अहंकार, दिखावे और अंधविश्वास से बचना
- आत्मज्ञान और आत्मचिंतन को महत्व देना
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निष्कर्ष :
कबीरदास जयंती न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह मानवता, समानता और आत्मबोध का पर्व भी है। आज के दौर में जब समाज फिर से जात-पात, नफरत और अंधविश्वास में उलझा हुआ है, तब कबीर के विचार हमें एकता, प्रेम और सत्य का मार्ग दिखाते हैं।
आइए, इस कबीर जयंती पर हम संकल्प लें कि हम उनकी वाणी को जीवन में उतारेंगे, और समाज में शांति और सद्भाव फैलाएंगे।