
निर्जला एकादशी का व्रत, महत्व और पूजा जानिए निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी व्रत माना जाता है। यह एकादशी हिन्दू धर्म की सबसे कठिन और पुण्यदायी एकादशियों में से एक मानी जाती है और अपार फल देने वाले स्वरूप के लिए भी जानी जाती है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी का महत्व :
निर्जला एकादशी का मतलब बिना जल, यानी इस व्रत में न खाया जाता है और न पानी पिया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। माना जाता है कि वर्ष की सभी एकादशियों का पुण्य अकेले निर्जला एकादशी के व्रत से प्राप्त हो जाता है। यह व्रत भीम एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि महाभारत के भीम ने इस व्रत को किया था। आज निर्जला एकादशी का दिन बहुत ही अच्छा माना जाता है।
निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त :
हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी की तिथि की शुरुआत
6 जून को रात्रि 2:15 बजे से शुरू होगी
और समाप्ति 7 जून सुबह 4:47 बजे होगी।
पारणा का समय :
निर्जला एकादशी के पारणा का समय 7 जून दोपहर 1:44 बजे से लेकर शाम के 4:31 मिनट तक रहेगा।
निर्जला एकादशी पर क्या करें :

- सुबह मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्ध होकर भगवान विष्णु के सामने पूजा और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हें पीले फूल, तुलसी पत्र, फल, और पंचामृत अर्पित करें।
- दिन भर निर्जला उपवास करें, बिना जल पिए।
- ध्यान, मंत्र जाप और व्रत कथा का पाठ करें और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करें।
- एक स्वच्छ स्थान पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- जरूरतमंदों को दान करें जैसे कि जलपात्र, फल, वस्त्र आदि का दान करें।
- शाम को दीपक जलाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें और माता लक्ष्मी को कमल का फूल अर्पित करें।
- निर्जला एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें।
- अगले दिन द्वादशी तिथि पर पारणा समय में व्रत तोड़ें और फल, जल या हल्का भोजन ग्रहण करें।
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निर्जला एकादशी का यह व्रत अत्यंत पुण्यकारी होता है। यह केवल उपवास नहीं बल्कि आत्मा की शुद्धि और भगवान विष्णु की भक्ति का पर्व है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से साल भर की एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो जाता है।